Saturday, June 1, 2013

छठवीं क्लास के सेक्शन ए से लाजवंती और सेक्शन बी से वीर


दोनों का मानना है कि उनकी मम्मियां पेड़ हैं. काहे कि स्कूल में पढ़ाया गया है कि हरे पेड़ अपना खाना खुद बनाते हैं और बाक़ी लोग उन्हीं से अपना खाना लेते हैं. रोटियाँ बेलते हुए मम्मी के हाथ की हरी- हरी नसें देख कर तो शक़ की कोई गुंजाइश ही नहीं रही. अपने- अपने पापाओं को दुनिया का सबसे लंबा इंसान मानने- मनवाने की रोज़ की हुज्ज़त, फिर सर- फुड़ौव्वल. दोनों पक्के वाले दोस्त हैं. एक दूसरे के शरीरों का भेद नहीं जानते. और वो जो पैरों के बीच कुछ है वो दोनों को एक दूसरे का उल्टा बनाता है इस बात से अभी अन्जान हैं. एक दिन समय के देवता इन दोनों को ये रहस्य समझा देंगे. लेकिन फ़िलहाल दोनों बच्चे हैं, बच्चे- दोस्त, दोस्त- बच्चे.
एक दूसरे के सारे रहस्यों, गुनाहों और मम्मी-पापा को धोखा देने के लिए बनाई रणनीतियों के भागीदार. नागराज और ध्रुव की कॉमिक्स कहाँ छुपाई है. ऊपर वाले घर के घंटी बजा कर कौन भागा. लूडो में बेईमानी कैसे की. अपने हिस्से से ज्यादा मिठाई कैसे चुरा के खानी है. पढ़ने की किताबों में सरिता- मनोरमा- कॉमिक्स कैसे छुपा के पढ़ी जाती है? झगड़ा होने पर ये सारी पोल- पट्टी खोल देने की धमकियां. फिर एक-एक घुम्मे-मुक्के और बाल नोंचय्या का हिसाब ले कर कट्टी-मिल्ली. कुछ भले काम भी किये हैं. एक दिन बिजली की तार से छूकर एक चिड़िया वीर के ऊपर आ गिरी. तब से चिड़ियों की जान बचाना शगल बन गया. गुल्लक में थोड़ी बचत भी कर ली है. उसकी खन-खन से सापेक्ष अमीरी-ग़रीबी का हिसाब लगाया जाता है. चलते कूलर के आगे अपनी रोबोट वाली आवाजें निकालना, किसी का घर बनाने के लिए गिराई बालू पर घर बनाना फिर इकठ्ठा की गयी सीपियों के लिए लड़ना. अगर ज़िंदगी सौ बरस की होती है तो दसवां हिस्सा इसी तरह जी लिया है. बच्चे- दोस्त, दोस्त- बच्चे बनके.


सब कुछ बढ़िया चल रहा था कि एक दिन स्कूल में खाने की छुट्टी में पूरी क्लास को रस्साकशी खेलने का भूत सवार हुआ. रस्सी के अभाव में दोनों टीमों के अगवा का हाथ ही खींचा-ताना जा रहा था. लड़के एक तरफ़, लड़कियां एक तरफ़ यही नियम है इस गेम का. ‘अपनी- अपनी टीमों में आ जाओ’ आवाज आई. दोनों सकपका गए, ये उनकी टीमें अलग कब से हो गयीं? उन्हें तो लड़कर भी एक दूसरे की तरफ़ से ही खेलने की आदत है. खैर, बेमन से खेला खेल ख़त्म हुआ पर कौन जीता कौन हारा दोनों को आज तक याद नहीं. फिर तो ये रोज़ का क़िस्सा हो गया. घर- बाहर, स्कूल, हर पीरियड में यही साज़िश. दोनों के बीच दशमलव की बिंदी आकर बैठ गई थी एक दायाँ था दूसरा बायाँ, टोटल वैल्यू कम कर दी खामखाँ. दोनों की दोस्ती गणित का एक समीकरण बन गई जिसमें अनजानी चीजों को ‘एक्स’ मान लिया जाता है. वैसे, बायोलॉजी के एक्स और वाई ने भी कम कहर नहीं ढाया. व्याकरण में अनुलोम- विलोम, स्त्रीलिंग- पुल्लिंग चल रहा है.. लड़का- लड़की, सुनार- सुनारिन, हलवाई- हलवाइन. स्त्री- पुरुष. ही-शी, ती है-ता है का बंटवारा. घर पे पहले बच्चे रोते थे अब लड़का- लड़की रोने लगे, लड़की थोड़ा ज्य़ादा. वीर को तो रोना ही मना हो गया.
धीरे- धीरे लाजवंती और वीर पर भी रंग चढ़ रहा है. आजकल खाने की छुट्टी में वीर ‘अपने जैसों’ के साथ गेंदतड़ी खेलता है और लाजवंती 'अपनी जैसियों’ के साथ साइड में बैठी मुंह पे हाथ धरे धीरे- धीरे ही- ही, खी- खी.
परीक्षा परिणामों के साथ लड्डू बंटे. छठवीं क्लास आ गयी. सेक्शन अलग हो गए लड़के ए में लड़कियां बी में. लड़कों को हाफ की जगह फुल पैंट पहननी है और लड़कियों को दो चोटी करके सफ़ेद रिबन बाँधना है. लाजवंती के बाल अभी छोटे हैं, वो पोनीटेल करके जा सकती है लेकिन होम साइंस पढ़ना जरूरी है.
“नील घोलने की विधि बताओ.”
होती होगी कुछ, लाजवंती की बला से, उसके घर में तो उजाला आता है. घुला-घुलाया, चार बूंदों वाला.
‘हाय राम मिस! इत्ता सरल सवाल?’ ये ज्योति केसरी पक्की चापलूस है मिस की. लाजवंती ने उसे मुंह चिढ़ा दिया. मिस ने उसे टेबल पे खड़े होने की सज़ा दी. 
“जानती हो गांधी जी ने कहा है कि स्त्रियों के लिए गृह- विज्ञान की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए. मेरी क्लास में तुम्हें मर्यादित व्यवहार करना होगा.” 
ये बाद की बात है कि लाजवंती को दिल्ली आकर पता चलेगा कि यहाँ लड़कियों को होम साइंस ज़रूरी नहीं है और वो इन सब मिसों, राष्ट्र्पिताओं और ज्योति केसरियों को एक साथ काल्पनिक अंगूठा दिखायेगी, ‘ले बच्चू!’ लेकिन क्लास में तो होम साइंस ने जान ले रक्खी है.
“घर को संभालने वाली को क्या कहते हैं?” मिस ने फिर कोंचा.
“जी हमारा घर तो लालमनी सम्भालती है, हमारी नौकरानी.”
पूरी क्लास को हंसने का दौरा पड़ गया. लाजवंती की सज़ा अपग्रेड हो गयी. उसे अब हाथ ऊपर कर के खड़े रहना होगा. घर जाकर लाजवंती का हाथ बहुत दुखा और मिस ने घर जाकर शांती धरावाहिक देखा. ज्योति केसरी ने घर जाकर सूजी का हलवा बनाया, बहुत बढ़िया!
सेक्शन बी में वीर की हालत भी बुरी थी. उसे लाजवंती के साथ बैठने की आदत थी. टेस्ट में लाजवंती तब तक पन्ना नहीं पलटती थी जब तक वीर पूरी नक़ल न कर ले. होंठ के किनारे से स्पेल्लिंग बताने की कला भी उसी को आती थी. वीर को तो बस ड्राइंग का शौक था. अपनी कॉपी में ज्यादा गुड/ फ़ेयर दिखा कर लाजवंती को टी ली ली ली. कला वाली मिस, जो अपनी लम्बी चोटी में कभी रबरबैंड नहीं लगाती थीं, उनका कहना था कि लड़कों की आर्ट ज्यादा अच्छी नहीं होती इसलिए उन्हें थोड़े प्रयास पे ही अधिक नंबर दे देने चाहियें, वीर तो एक अपवाद है. 
‘लड़की के साथ जो खेला करता था सारा दिन.’
तो लाजवंती लड़की थी?
वीर ने घर जाकर एक नए तरीके का साड़ी का किनारा बनाया. कला वाली मिस ने भी घर जाकर शांती धारावाहिक देखा और अपने बाल खोल कर सो गयीं. लाजवंती को लड़की कहने वाले लड़कों ने अपनी-अपनी पेड़-मम्मियों से लेकर खाना  खाया और कॉन्ट्रा या मारियो जैसा कुछ खेल कर सो गए.
बरसों बाद उस क़स्बे में प्रगति आयेगी और इंग्लिश ‘स्पोकना’ सिखाने वाले सेंटर खुलेंगे. को- एजुकेशन और लव-मैरिज डिबेट के फेवरेट टॉपिक्स होंगे. गर्मागर्म बहस चलेगी. हल क्या निकलेगा पता नहीं. लेकिन लाजवंती और वीर का तो बड़ा नुक़सान हो गया. अब से पूरी क्लास-सर-मिस को पता चल गया है कि लाजवंती ने अपनी कला की कॉपी में कनेर का फूल और तश्तरी में रखा आम कभी खुद नहीं बनाया था. और वीर को विज्ञान का ढेंगा भी नहीं आता था.

(कहानी आगे बढ़ती है- चम्पकवन, ट्रेन और बारामूडा ट्रायेंगल
http://shwetakhatri.blogspot.in/2013/06/comingofage.html)

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